साइमन कमीशन 1927

साइमन कमीशन

साइमन कमीशन 
सन् 1922 ई. में खिलाफत तथा असहयोग आन्दोलन की समाप्ति के बाद से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन समाप्त प्राय: जैसा लगता था। गाँधी जी की अनुपस्थिति में स्वराज दल ने अपने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से राष्ट्रीय आन्दोलन को जीवित रखने का प्रयत्न अवश्य किया था। 1924 ई. में वाइसराय इरविन ने महात्मा गाँधी सहित अन्य भारतीय नेताओं को दिल्ली में भेंट करने के लिए आमन्त्रित किया। इसके पूर्व 8 जनवरी 1927 ई. को वाइसराय द्वारा एक राज्य आयोग की नियुक्ति की घोषणा भी कर दी गई थी। गाँधी जी राजकीय आयोग की नियुक्ति की उद्घोषणा से अत्यन्त दुःखी थे। क्योंकि 1919 ई. के भारत सरकार अधिनियम की धारा 84 में यह व्यवस्था की गई थी। कि सुधारों पर विचार करने तथा नये सुधारों के लिए सुझाव देने के लिए 10 वर्षों के बाद सरकार एक राजकीय आयोग नियुक्त करेगी, इस धारा के अनुसार 1929 ई. में राजकीय आयोग की नियुक्ति होती, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने कई कारणों से दो वर्ष पूर्व ही राजकीय आयोग की नियुक्ति की घोषणा कर दी। आयोग के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे, जिनके नाम पर इसे 'साइमन कमीशन' के नाम से जाना जाता है।

साइमन कमीशन की नियुक्ति
ब्रिटिश सरकार ने भारतीय सुधारों की जांच कराने के लिए सन् 1927 ई. में ही एक कमीशन की नियुक्ति की। इस कमीशन की समय से पहले नियुक्ति के कुछ कारण थे
  1. भारतीयों ने 1919 ई. में सुधारों में शीघ्र परिवर्तन की माँग प्रमुखता से रख दी थी।
  2. सन् 1929 ई. में इंग्लैण्ड में चुनाव होने वाले थे और उसमें मजदूर दल के जीतने की पूरी उम्मीद थी, इसलिए सत्तारूढ़ अनुदार दल भारत के भविष्य को मजदूर दल के हाथों में नहीं छोड़ना चाहता था, क्योंकि अनुदार दल को यह भय था कि कहीं मजदूर दल भारत को पूर्ण स्वराज्य प्रदान न कर दे।

साइमन कमीशन के उद्देश्य
  1. यह ब्रिटिश भारतीय प्रान्तों में यह पता लगाये कि सरकार किस प्रकार रही है।
  2. प्रतिनिधि संस्थाएँ कहाँ तक कार्य कर रही हैं।
  3. शिक्षा में कहाँ तक प्रगति हुई है।
  4. उत्तरदायी सरकार के सिद्धान्त को अधिक बढ़ाया जाए अथवा सीमित किया जाए अथवा इसमें अन्य कोई उचित परिवर्तन किया जाए। 

साइमन कमीशन का बहिष्कार
साइमन कमीशन के समस्त सदस्य अंग्रेज थे भारत सचिव लॉर्ड ब्रीकनहेड को यह पहले ही बता दिया गया था कि चूँकि, कमीशन के सारे सदस्य अंग्रेज हैं, इसलिए इसका भारतीयों द्वारा विरोध किया जाना आवश्यक है, परन्तु भारत सचिव ने इस बात की तनिक भी परवाह नहीं की। अतः भारतीयों ने इसे अपमानजनक समझा। हिन्दू महासभा, मुस्लिम लीग, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इत्यादि दलों ने इसका बहिष्कार किया। श्रीमती एनी बेसेण्ट ने कमीशन की नियुक्त को जल पर नमक छिड़कना बताया और दीन शॉ वाचा ने इसके विरोध में एक घोषणा-पत्र जारी किया। कांग्रेस ने दिसम्बर, 1927 ई. के मद्रास अधिवेशन में साइमन कमीशन का बहिष्कार करने का निर्णय लिया। 7 फरवरी, 1928 ई. को जब साइमन कमीशन बम्बई पहुँचा, तब बम्बई में उसके विरोध में अनेक प्रदर्शन किये गये भारत में जहाँ-जहाँ साइमन कमीशन गया, वहाँ काले झण्डों, हड़तालों और विरोध प्रदर्शनों से उसका स्वागत किया गया। 'साइमन कमीशन जाओ के नारे भी लगाये गए।

जब साइमन कमीशन लाहौर पहुँचा, तब उसके विरुद्ध लाला लाजपत राय के नेतृत्व में एक बड़ा जुलूस निकाला गया। पुलिस अधिकारी सॉण्डर्स ने लालाजी पर लाठी से सख्त प्रहार किये, जिससे लालाजी को काफी चोटें आयीं और कुछ दिनों के बाद इसी कारण उनकी मृत्यु हो गई। घायल होते समय 'पंजाब का शेर' लालाजी ने दहाड़ते हुए कहा था, “ये लाठियों के आघात, जो मुझ पर किये गये हैं, एक दिन ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत की कीलें साबित होंगे।" इससे सरदार भगत सिंह आदि क्रान्तिकारी नेताओं को बहुत क्रोध आया और उन्होंने इसे राष्ट्रीय अपमान समझकर सॉण्डर्स से बदला लेने का विचार किया। सरदार भगत सिंह और चन्द्रशेखर आजाद ने मिलकर सॉण्डर्स की हत्या करके इस राष्ट्रीय अपमान का बदला लिया।

जब साइमन कमीशन लखनऊ पहुँचा, तब इसके विरुद्ध पं. गोविन्द वल्लभ पन्त और पं. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में प्रदर्शन हुए और पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर अनेक अत्याचार किये थे।

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