मनु के राजनीतिक विचार

मनु के राजनीतिक विचार
भारतीय राजनीतिक चिन्तन में मनु को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। वे प्रथम राजनीतिक विचारक थे जिन्होने अराजकता का अन्त कर शासन की प्रतिष्ठा पर बल दिया। उन्होंने सीमित राजतन्त्र का समर्थन करके जनता के अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं में अपनी पूर्ण आस्था व्यक्त की। 
मनु के राजनीतिक विचारों का महत्व निम्नलिखित है-
  • ‘मनुस्मृति’ का व्यापक चिन्तन क्षेत्र - ‘मनुस्मृति’ की विषय - वस्तु का क्षेत्र पर्याप्त व्यापक है। मनु राजनीतिक विचारधारा का प्रतिपादन करता है, ‘मनुस्मृति’ में मानव-धर्म का विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है। वास्तव में, मनु के विचार मानव के धर्म, संस्कार, आचार-व्यवहार आदि विविध विषयों की दार्शनिक एवं शास्त्रीय व्याख्या करते हैं। इस दृष्टि से ‘मनुस्मृति’ का अधिकांश भाग हिन्दू धर्म की संहिता के रूप में माना जाता है। 
  • धर्म-प्रधान राजनीति का समर्थन - ‘मनुस्मृति’ के अन्तर्गत राज्य धर्म अथवा राजनीति से सम्बन्ध रखने वाली बातें मनु के सम्पूर्ण दर्शन का अंग मात्र हैं, परन्तु धर्म की रक्षा तथा अभिवृद्धि के लिए और मानव को धर्मरत् रखने के लिए दण्ड की उत्पत्ति, उसकी महत्ता तथा दण्डनीति को समुचित ढंग से लागू करने की व्यवस्था अत्यावश्यक है। राजधर्म के अन्तर्गत मनु ने इन्हीं सब व्यवस्थाओं का पूर्ण विवेचन किया है। मनु के राजनीतिक विचार धर्म-प्रधान राजनीति का प्रतिपादन करते हैं। धर्म का अभिप्राय सम्पूर्ण मानव-धर्म से है जो वैदिक धर्म पर आधारित है।
  • वर्णाश्रम पर आधारित समाज व्यवस्था का समर्थक - मनु वर्ण व्यवस्था के समर्थक हैं और उन्होने राजनीतिक व्यवस्था के संचालन में ब्राह्मणों को सर्वोच्च स्थिति प्रदान की है वर्ण व्यवस्था का आधार कार्य-विभाजन का सिद्धान्त है जैसा कि एक अन्य रूप में प्लेटो के विचारों में भी पाया जाता है।

राज्यों का पुनर्गठन

  • स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देशी रियासतों और ब्रिटिश शासित भारतीय रियासतों का विलय कर दिया गया।
  • भाषा के आधार पर सर्वप्रथम 1953 में आंध्र प्रदेश राज्य का गठन किया गया।
  • बाद में फजल अली आयोग की सिफारिशों ने राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के द्वारा राज्यों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया।
  • इसके आधार पर 14 राज्यों और 6 संघशासित प्रदेशों का निर्माण हुआ।
  • 1 मई, 1960 को मराठी एवं गुजराती भाषियों के बीच संघर्ष के कारण बम्बई राज्य का बँटवारा कर महाराष्ट्र एवं गुजरात-दो राज्यों की स्थापना की गई।
  • भारत सरकार ने 18 दिसम्बर, 1961 को गोवा, दमन व दीव को पुर्तगालियों से मुक्त कराकर उन पर पूर्ण अधिकार कर लिया।
  • बारहवें संविधान संशोधन द्वारा गोवा, दमन व दीव को प्रथम परिशिष्ट में शामिल करके भारत का अभिन्न अंग बना दिया गया।
  • नागा आन्दोलन के कारण असम को विभाजित करके, 1 दिसम्बर, 1963 में नागालैंड को अलग राज्य बनाया गया।
  • 1 नवम्बर, 1966 में पंजाब को विभाजित करके पंजाब (पंजाबी भाषा) में हरियाणा (हिन्दी भाषा) नामक दो राज्य बना दिए गए।
  • 25 जनवरी, 1971 को हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
  • 21 जनवरी, 1972 को मणिपुर, त्रिपुरा एवं मेघालय को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
  • 20 फरवरी, 1987 को मिजोरम व अरुणाचल प्रदेश तथा 30 मई, 1987 को गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
  • वर्ष 2000 में मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश से उत्तरांचल (उत्तराखण्ड) तथा बिहार से अलग कर झारखण्ड नाम से नए राज्य बनाए गए।
  • 2 जून, 2014 को भारत का 29वाँ राज्य तेलंगाना अस्तित्व में आया। यह आंध्र प्रदेश को विभाजित करके बनाया गया है।

जम्मू-कश्मीर
  • भारतीय संविधान, जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 के अन्तर्गत विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करता है, जो कि 26 जनवरी, 1957 से अस्तित्व में आया।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1, जम्मू और कश्मीर को भारतीय क्षेत्र के एक भाग के रूप में पन्द्रहवाँ राज्य का दर्जा प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 370 के अनुसार, संघ और समवर्ती सूचियों में संसद की, राज्यों के लिए कानून बनाने की शक्तियां, उन मामलों में सीमित रहेगी, जिसमें राज्य सरकार की सहमति शामिल है।
विधान परिषद
  • विधान परिषद, राज्य विधानमण्डल का उच्च सदन होता है। वर्तमान में केवल सात राज्यों (उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, जम्मू एवं कश्मीर, महाराष्ट्र, बिहार तथा आन्ध्र प्रदेश एवं तेलंगाना) में विधानपरिषदें विद्यमान हैं।
  • विधान परिषद का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु-सीमा 30 वर्ष है।
  • विधान परिषद के प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष होता है, किन्तु प्रति दूसरे वर्ष एक-तिहाई सदस्य अवकाश ग्रहण करते हैं तथा उनके स्थान पर नवीन सदस्य निर्वाचित होते हैं।
  • विधान परिषद अपने सदस्यों में से दो को सभापति एवं उपसभापति चुनते हैं।


विधानसभा
विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष होता है। विशेष परिस्थिति में राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह इससे पूर्व भी उसको विघटित कर सकता है।
  • विधानसभा में निर्वाचित होने के लिए न्यूनतम आयु-सीमा 25 वर्ष है।
  • प्रत्येक राज्य की विधानसभा में कम-से-कम 60 और अधिक-से-अधिक 500 सदस्य होते हैं। अपराध- अरुणाचल प्रदेश (40), गोवा (40), मिजोरम (40), सिक्किम (32)। विधानसभा के सदस्यों का चुनाव वयस्क मताधिकार प्रणाली द्वारा होता है।


केन्द्र-राज्य सम्बन्ध
भारत में केन्द्र-राज्य सम्बन्ध संघवाद की ओर उन्मुख है और संघवाद की इस प्रणाली को कनाडा के संविधान से लिया गया है। भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में केन्द्र एवं राज्य की शक्तियों के बंटवारे से सम्बन्धित तीन सूचियां दी गई हैं-(i) संघ सूची, (97 विषय) (ii) राज्य सूची (66 विषय) और (ii) समवर्ती सूची (52 विषय)।

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