गुप्त काल का इतिहास

गुप्त काल का इतिहास
हर्षवर्द्धन
  • 16 वर्ष की अवस्था में हर्षवर्द्धन राजगद्दी पर बैठा। उसने शिलादित्य की उपाधि ग्रहण की थी।
  • वर्द्धन वंश की राजधानी थानेश्वर थी, किन्तु हर्षवर्द्धन ने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया था। 
  • बाणभट्ट हर्ष का राजकवि था। उसने हर्षचरित की रचना की थी। 
  • हर्षवर्द्धन ने नागानन्द, रत्नावली और प्रियदर्शिका नामक नाटकों की रचना की थी।
  • ह्वेनसांग, हर्षवर्द्धन के शासनकाल में भारत आया था।
  • दक्षिण भारत के चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय ने हर्षवर्द्धन को नर्मदा नदी के किनारे 630 ई. में हराया।

पाल वंश
  • पाल वंश का संस्थापक गोपाल था। उसकी राजधानी मुंगेर थी। वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। 
  • धर्मपाल ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।
  • देवपाल इस वंश का शक्तिशाली शासक था। 
  • जावा के शैलेन्द्र वंशीय शासक बाल पुत्र देव के अनुरोध पर देवपाल ने उसे नालन्दा में एक बौद्ध विहार बनवाने के लिए पाँच गाँव दान में दिए थे।

दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश - पल्लव वंश
  • सिंहविष्णु 575 से 600 ई. तक पल्लव वंश का संस्थापक था। उसकी राजधानी काँची थी। 
  • महाबलीपुरम के रथ मन्दिर का निर्माण नरसिंहवर्मन प्रथम ने करवाया था।
  • काँची के कैलाश मन्दिर का निर्माण नरसिंहवर्मन द्वितीय ने करवाया था। पल्लव वंश का अन्तिम शासक अपराजित था।

राष्ट्रकूट
  • दन्तिदुर्ग ने 752 ई. में राष्ट्रकूट वंश की स्थापना की। 
  • ऐलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मन्दिर का निर्माण कृष्ण प्रथम ने करवाया था। 
  • ध्रुव प्रथम राष्ट्रकूट शासक था, जिसने कन्नौज पर अधिकार करने हेतु त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया और प्रतिहार नरेश वत्सराज एवं पाल नरेश धर्मपाल को पराजित किया था।
  • राष्ट्रकूटों की राजधानी मनकिर या मान्यखेट थी।
  • इन्द्र तृतीय के शासनकाल में अरब यात्री अलमसूदी भारत आया। राष्ट्रकूट वंश का अन्तिम महान शासक कृष्ण-तृतीय था। 
  • एलोरा एवं ऐलिफेन्टा (महाराष्ट्र) गुफा मंदिरों का निर्माण राष्ट्रकूटों के समय में हुआ था।

चालुक्य वंश (वातापि)
  • वातापी के चालुक्य वंश का संस्थापक पुलकेशिन प्रथम था। महाकूट अभिलेख में उसके पूर्व दो शासकों जयसिंह तथा रणराग के नाम मिलते है परन्तु उनके शासन काल के नियम में हमें कुछ ज्ञात नहीं है। इस वंश का सबसे प्रतापी राजा पुलकेशिन द्वितीय था।
  • पुलकेशिन द्वितीय ने 'दक्षिणापथेश्वर' तथा 'परमेश्वर' की उपाधि धारण की थी। 
  • ऐहोल अभिलेख रविकीर्ति द्वारा लिखित है।
  • जिनेन्द्र के मेगुती मंदिर का निर्माण पुलकेशिन II ने कराया था। 
  • नरसिंहवर्मन ने 'वातापिकोड' को उपाधि धारण की थी।

चालुक्य वंश (कल्याणी)
  • कल्याणी के चालुक्य वंश की स्थापना तैलप-द्वितीय ने की थी। तैलप-द्वितीय की राजधानी मान्यखेट थी। 
  • चालुक्यों का पारिवारिक चिह्न वाराह था।
  • सोमेश्वर प्रथम ने कल्याणी (कर्नाटक) को राजधानी बनाया इस वंश का सबसे प्रतापी शासक विक्रमादित्य-षष्ठ था। 
  • विल्हण एवं विज्ञानेश्वर विक्रमादित्य-षष्ठ के दरबार में ही रहते थे।
  • मिताक्षरा की रचना विज्ञानेश्वर ने तथा विक्रमांकदेवचरित की रचना कल्हण ने की थी।

चोल साम्राज्य
  • चोल वंश का संस्थापक विजयालय था, इसकी राजधानी तंजौर थी। उसने नरकेसरी की उपाधि धारण की थी। 
  • राजराजा प्रथम ने उत्तरी श्रीलंका तथा मालदीव पर अधिकार कर लिया था।
  • राजराज प्रथम ने तंजौर में राजराजेश्वर शिवमंदिर बनवाया था। 
  • राजेन्द्र प्रथम ने बंगाल अभियान के दौरान पाल शासक महीपाल को पराजित कर, गंगैकोंडचोल की उपाधि धारण की। राजेन्द्र चोल ने विशाल नौसेना द्वारा दक्षिण पूर्व एशिया में विजय अभियान चलाया।
  • चोल शासक अधिराजेन्द्र एक जनविद्रोह में मारा गया था।
  • रामानुज, कुलोतुंग प्रथम के समकालीन थे। 
  • चोल वंश का अन्तिम शासक राजेन्द्र तृतीय था।
  • उत्तरमेरुर अभिलेख से स्थानीय स्वशासन की जानकारी मिलती है। 
  • स्थानीय स्वशासन चोल शासन की प्रमुख विशेषता थी।
  • चोलकालीन नटराज प्रतिमा चोल कला का सांस्कृतिक सार या निचोड़ माना जाता है।

सेन वंश
  • सेन वंश की स्थापना सामन्तसेन ने बंगाल में की थी। इसकी राजधानी नदिया (लखनौती) थी।
  • सेन शासक बल्लालसेन ने कुलीन प्रथा चलाई थी। इसने दान सागर नामक पुस्तक की रचना की थी।
  • लक्ष्मणसेन बंगाल का अन्तिम हिन्दू शासक था। 

कश्मीर के राजवंश
  • सातवीं शताब्दी में दुर्लभवर्द्धन नामक व्यक्ति ने कश्मीर में कार्कोट वंश की स्थापना की थी।
  • कार्कोट वंश के महान शासक ललितादित्य मुक्तापीड़ ने मार्तण्ड मन्दिर का निर्माण करवाया था।
  • 980 ई. में उत्पल वंश की रानी दिद्दा ने कश्मीर पर शासन किया।
  • कल्हण की राजतरंगिणी का विवरण, लोहार वंश के अन्तिम शासक जयसिंह के शासनकाल में समाप्त करता है।

राजपूत वंश
  • अग्निकुल सिद्धान्त के अनुसार प्रतिहार, चालुक्य, चौहान तथा परमार की उत्पत्ति आबू पर्वत पर वशिष्ठ के अग्निकुण्ड से हुई थी। यह सिद्धान्त चन्दबरदाई के 'पृथ्वीराज रासो' पर आधारित है।

प्रतिहार वंश
  • प्रतिहार वंश का संस्थापक हरिश्चन्द्र था, परन्तु नाग भट्ट प्रथम वास्तविक प्रथम महत्वपूर्ण राजा था।
  • इस काल का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक मिहिरभोज था। इसने कन्नौज को राजधानी बनाया। इसके शासनकाल में अरब यात्री सुलेमान भारत आया था।
  • महेन्द्रपाल तथा महिपाल ने राजशेखर को संरक्षण दिया, जिसने कर्पूरमंजरी, काव्यमीमांसा, हरविलास की रचना की। इस वंश का अन्तिम शासक यशपाल था।
  • दिल्ली नगर की स्थापना अनंगपाल ने की थी।

चौहान वंश
  • चौहान वंश की शाकम्भरी (अजमेर के निकट) शाखा का संस्थापक वासुदेव था। 
  • पृथ्वीराज तृतीय (रायपिथौरा) इस वंश का अन्तिम महान शासक था।
  • पृथ्वीराज रासो के लेखक चन्दबरदाई पृथ्वीराज तृतीय के दरबारी कवि थे।
  • तराइन का प्रथम युद्ध 1191 ई. में हुआ, जिसमें पृथ्वीराज तृतीय ने मुहम्मद गौरी को हराया था।
  • तराइन का द्वितीय युद्ध 1192 ई. में हुआ था, जिसमें मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज तृतीय को हराया।

परमार वंश
  • परमार वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक भोज था। 
  • भोज ने त्रिभुवन नारायण मंदिर का निर्माण कराया था।

चन्देल वंश
  • नन्नुक ने चन्देल वंश की स्थापना की। चन्देल वंश की राजधानी खजुराहो थी।
  • धंगदेव के शासनकाल में खजुराहो के कन्दरिया महादेव मन्दिर का निर्माण हुआ था।

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