मौर्य साम्राज्य का इतिहास
चन्द्रगुप्त मौर्य
- 322 ई.पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने गुरु चाणक्य की सहायता से घनानंद की हत्या कर मौर्य वंश के शासन की नींव रखी।
- चन्द्रगुप्त ने 305 ई.पू. में सिकन्दर के सेनापति सेल्यूकस को हराया सेल्यूकस ने एरिया, अराकोसिया, जेडोसिया एवं पेरीपेनिसदाई के राज्य प्रदान किए। सुदूर दक्षिण भारत को छोड़कर सम्पूर्ण भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान इसके अधिकार में थे।
- चन्द्रगुप्त ने श्रवणबेलगोला (मैसूर) में देह त्याग कि। चन्द्रगुप्त को 'सैंड्रोकोट्स' भी कहा गया है।
- मेगस्थनीज चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में सेल्यूकस का राजदूत था। वह 5 वर्षों तक पाटलिपुत्र में रहा।
बिन्दुसार
- चन्द्रगुप्त की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बिन्दुसार गद्दी पर बैठा। उसके शासनकाल में तक्षशिला में दो विद्रोह हुए, जिन्हें दबाने के लिए उसने पहले सुसीम को भेजा और बाद में अशोक को भेजा।
- सीरिया के शासक एण्टियोकस I ने डायमेकस को तथा मिस्र के शासक टॉलेमी ने डायनिसस को बिन्दुसार के दरबार में भेजा था।
अशोक
- 269 ई.पू. में मगध की राजगद्दी पर अशोक बैठा। राजगद्दी पर बैठने के समय वह अवन्ति का राज्यपाल था। अशोक ने कलिंग-युद्ध (261 ई.पू.) में हुए रक्तपात से दुःखी होकर बौद्ध धर्म स्वीकार किया। अशोक ने साँची के स्तूप का निर्माण कराया था।
- अशोक के अभिलेखों को सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप ने 1837 ई. में पढ़ने में सफलता प्राप्त की।
- अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा था।
- अशोक के बाद कुणाल गद्दी पर बैठा वृहद्रथ इस वंश का अंतिम शासक था।
शुंग वंश
- 185 ई.पू. में अन्तिम मौर्य शासक वृहद्रथ की हत्या कर उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने गद्दी हथिया ली तथा शुंग वंश की स्थापना की पुष्यमित्र शुंग एक ब्राह्मण था, पुष्यमित्र शुंग के समय में भागवत धर्म का विकास हुआ।
- पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेध यज्ञ किए। शुंग वंश के पश्चात् देवभूति ने कण्व वंश की (75-30 ई.पू.) स्थापना की।
सातवाहन वंश
- सातवाहन साम्राज्य की स्थापना तीसरी सदी में सिमुक द्वारा की गई। इसे 'आन्ध्र' भी कहा जाता हैं।
- गौतमीपुत्र शातकर्णी इस वंश का महान् शासक था। गौतमी बलश्री के नासिक अभिलेख में 'अद्वितीय ब्राह्मण' कहा गया है। इनकी राजकीय भाषा प्राकृत एवं लिपि ब्राह्मी थी।
- इस काल में ताँबे तथा काँसे के अतिरिक्त सीसे के सिक्के बहुत प्रचलित हुए।
विदेशी आक्रमण - हिन्द-यूनानी
- मौर्योत्तर काल में भारत पर सबसे पहला आक्रमण बैक्ट्रिया के ग्रीकों ने किया, जिन्हें यवन कहा जाता है। भारत पर यवनों का प्रथम आक्रमण पुष्यमित्र शुंग के शासन काल में हुआ था।
- भारत में सर्वप्रथम प्रवेश करने का श्रेय यूथेडेमस वंश के डेमिट्रियस प्रथम को है, उसने 183 ई.पू. में साकल को अपनी राजधानी बनाया।
- सबसे प्रसिद्ध यवन शासक मिनाण्डर था बौद्ध साहित्य में वह 'मिलिन्द' के नाम से प्रसिद्ध है।
- इण्डो-ग्रीक शासकों ने भारत में सर्वप्रथम 'सोने के सिक्के' जारी किए।
- यूक्रेटाइड्स ने भारत के कुछ हिस्सों को जीतकर तक्षशिला को अपनी राजधानी बनाया। ये मध्य एशिया से आए थे।
शक/सीथियन
- भारत के पश्चिमोत्तर प्रान्त में बसने वाले शकों ने स्वयं को क्षत्रप कहा।
- 57 ई. पू. में विक्रमादित्य ने मालवा के शकों को परास्त कर खदेड़ दिया, इन्हीं के नाम पर विक्रम संवत् प्रारम्भ हुआ।
- रुद्रदामन प्रथम (130-150 ई.) के अभिलेख में सुविशाख द्वारा सुदर्शन झील बाँध के पुनर्निर्माण का उल्लेख मिलता है।
हिन्द-पार्थियन अथवा पह्लव
- शकों के बाद पार्थियाई लोगों का पश्चिमोत्तर भारत पर आधिपत्य स्थापित हुआ। उनका मूल निवास-स्थान ईरान था, भारतीय साहित्य में वे पह्लव कहे गए हैं। पल्लव शासन का वास्तविक संस्थापक मिथ्रेडेट्स प्रथम था। यद्यपि सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक गोंदोफर्निस था। इस समय सेण्ट थॉमस ईसाई धर्म का प्रचार करने भारत आया था।
कुषाण वंश
- कुषाण यूची कबीला की एक शाखा थी। इस वंश का संस्थापक तथा प्रथम शासक कुजुल कडफिसेस था। कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक कनिष्क था।
- कनिष्क ने 78 ई. में शक सम्वत् आरम्भ किया। उसने बौद्ध धर्म को संरक्षण प्रदान किया था महायान सम्प्रदाय का प्रचार-प्रसार किया। चरक, कनिष्क के राजवैद्य थे, जिन्होंने चरक संहिता लिखी। 'कामसूत्र' की रचना 'वात्स्यायन' ने इसी काल में की थी।
- कुषाणों की राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) एवं मथुरा थी।
Really a nice post
ReplyDeletethank you
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