गुप्त साम्राज्य का हतिहास - गुप्तकालीन प्रवृत्तियाँ

गुप्त साम्राज्य का हतिहास
चन्द्रगुप्त प्रथम
  • गुप्त वंश का संस्थापक श्रीगुप्त था। वास्तविक संस्थापक चन्द्रगुप्त प्रथम को माना जाता है। 
  • चन्द्रगुप्त प्रथम ने 319 ई. में गुप्त संवत् आरम्भ किया। चन्द्रगुप्त प्रथम ने लिच्छिवि राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया था।
  • सर्वप्रथम रजत मुद्राओं का प्रचलन चन्द्रगुप्त प्रथम ने कराया था।
समुद्रगुप्त
  • चन्द्रगुप्त प्रथम के बाद उसका पुत्र समुद्रगुप्त शासक बना। स्मिथ ने इसे भारत का नेपोलियन कहा है।
  • समुद्रगुप्त की विजयों का विवरण काव्य प्रशस्ति (प्रयाग प्रशस्ति) में मिलता है। इसे हरिषेण ने उत्कीर्ण किया था। समुद्रगुप्त कवि, संगीतकार और विद्वानों का संरक्षक था। 
  • समुद्रगुप्त को अश्वमेध यज्ञ करवाने का श्रेय दिया जाता है।

चन्द्रगुप्त द्वितीय
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के नाम से प्रसिद्ध है।
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय के अन्य नाम - देवगुप्त, देवराज, देवश्री थे।
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्न थे- कालिदास, धन्वन्तरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेतालभट्ट, घटकर्पर, वराहमिहिर, वररुचि। 
  • चीनी यात्री फाह्यान इसके शासनकाल में भारत आया था। चन्द्रगुप्त द्वितीय ने विक्रमांक, विक्रमादित्य, परमभागवत आदि उपाधियाँ धारण कीं। 
  • शक विजय के उपरान्त शकारि उपाधि धारण की तथा मैहरौली (दिल्ली) में लौह-स्तम्भ खुदवाकर विजयोत्सव मनाया।

कुमारगुप्त प्रथम
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय के उपरान्त कुमारगुप्त प्रथम शासक बना। गुप्त शासकों में सर्वाधिक अभिलेख कुमारगुप्त प्रथम के मिलते हैं। कुमारगुप्त प्रथम के अन्तिम दिनों में पुष्यमित्रों का आक्रमण हुआ था। इसके शासनकाल में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी।

स्कन्दगुप्त
  • इसके शासनकाल में हूणों का आक्रमण हुआ था। सुदर्शन झील का पुनरुद्धार स्कन्दगुप्त के समय सौराष्ट्र के गवर्नर पर्णदत्त के पुत्र चक्रपालित ने करवाया था।
  • स्कन्दगुप्त ने 466 ई. में चीनी सांग सम्राट के दरबार में राजदूत भेजे थे।

कुमारगुप्त तृतीय
  • यह गुप्त साम्राज्य का अन्तिम महान् शासक था। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद गुप्त प्रान्तों में सर्वप्रथम जूनागढ़ (सौराष्ट्र) प्रान्त स्वतन्त्र हुआ था। अन्तिम गुप्त शासक विष्णुगुप्त तृतीय था।

गुप्तकालीन प्रवृत्तियाँ - राजनीतिक स्थिति
  • राजपद वंशानुगत था। राजा को पालनकर्ता भगवान विष्णु के रूप में देखा जाता था तथा सबसे बड़े अधिकारी 'कुमारामात्य' होते थे।
  • प्रशासकीय पद आनुवंशिक बन गए, सेना का गठन सामंतवादी था। स्थानीय प्रशासन में नगर श्रेष्ठि, सार्थवाह, प्रथम-कुलिक का प्रभाव बढ़ गया।

सामाजिक स्थिति
  • वर्ण व्यवस्था की विशेषता वैश्यों की सामाजिक स्थिति में गिरावट एवं शूद्रों की स्थिति में अपेक्षाकृत सुधार था।
  • सती प्रथा का सर्वप्रथम प्रमाण (510 ई.) भानुगुप्त के एरण अभिलेख से मिलता है, जिसमें नागराज नाम सेनापति की स्त्री के सती होने का उल्लेख मिलता है। समाज में दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा तथा बाल विवाह प्रथा एवं दास प्रथा विद्यमान थी। फाह्यान ने अस्पृश्यता का उल्लेख किया है।

आर्थिक स्थिति
  • चावल और जौ प्रमुख फसलें थीं। 'खिल' ऐसी भूमि थी, जो जोती नहीं जाती थी।
  • कपड़े का निर्माण सर्वप्रमुख उद्योग था।
  • चाँदी के सिक्कों का प्रयोग स्थानीय लेन-देन के लिए होता था। स्वर्ण मुद्रा दीनार थी। रोमन साम्राज्य के विभाजन से सम्भवतः विदेशी व्यापर में गिरावट आई।
  • फाह्यान के अनुसार, सामान्य लोग खरीद-बिक्री के लिए कौड़ी का प्रयोग करते थे।

सांस्कृतिक स्थिति
  • त्रिमूर्ति के अन्तर्गत गुप्त काल में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पूजा होती थी।
  • हिन्दू धर्म के सम्प्रदाय (वैष्णव एवं शैव) विकसित थे।
  • गुप्त स्थापत्य ने नागर शैली का आधार तैयार किया।
  • कला और साहित्य के विकास से इस काल को स्वर्ण युग कहा जाता है।
  • देवगढ़ का दशावतार मन्दिर (वैष्णव मंदिर) भारतीय मन्दिर निर्माण में शिखर का पहला उदाहरण है।
  • आर्यभट्ट, वराहमिहिर, धनवन्तरि तथा ब्रह्मगुप्त प्रमुख विद्वान् थे।

संगम युग
  • संगम से तात्पर्य तमिल कवियों के संघ अथवा मण्डल से है। इसका आयोजन पाण्ड्य राजाओं के संरक्षण में हुआ।
  • संगम साहित्य से ज्ञात होता है कि दक्षिण में आर्य सभ्यता का प्रसार अगस्त्य एवं कौडिण्य ऋषि ने किया।
  • इस काल में मुरुगन की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी।
  • इस समय तीन महत्त्वपूर्ण राज्यों-चोल, चेर तथा पाण्ड्य का उल्लेख मिलता है।

चेर राज्य
  • इसमें आधुनिक केरल तथा तमिलनाडु के कुछ अंश शामिल थे। उदायिन-जेरल (130 ई.) प्रथम चेर शासक था। इस वंश का प्रतीक चिन्ह धनुष था।
  • नेदुनजेरल आदन ने मरन्दै को अपनी राजधानी बनाया। इसने इमयवरम्बन की उपाधि ग्रहण की।
  • शेनगुट्टवन, 'लाल चेर' के नाम से जाना जाता है। यह महानतम चेर शासक था।
  • वांजि (करुयूर) चेरों की राजधानी थी।

चोल राज्य
  • यह प्राचीनतम संगमकालीन राज्य था। इसकी राजधानी पुहार अथवा कावेरीपत्तनम थी।
  • इसका प्रतीक चिह्न बाघ था। करिकाल प्रारम्भिक चोल शासकों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण था।

पाण्ड्य राज्य
  • पाण्ड्य राज्य प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी भाग में था। मदुरै इसकी राजधानी थी।
  • मछली (कार्प) पाण्ड्यों का प्रतीक चिन्ह था।
  • पाण्ड्य वंश का ऐतिहासिक शासक पलशालै मुदुकुडुमी था।
  • महानतम पाण्ड्य शासक नेण्डुजेलियन ने रोमन सम्राट आगस्टस के दरबार में अपना दूत भेजा था।

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