सामाजिक विचारधारा क्या है

सामाजिक विचारधारा क्या है
'सामाजिक विचारधारा' का शाब्दिक अर्थ है समाज के बारे में विचार या समाज के बारे में चिन्तन। ये सामाजिक विचार सामाजिक व्यक्तियों अथवा सहयोगी व्यक्तियों के सहचिंतन का परिणाम है। इस प्रकार का सही चिन्तन दैनिक जीवन की किसी भी प्रकार की समस्या से सम्बन्धित हो सकता है क्योंकि समस्याएँ सदैव समाज में ही रही है। इसलिए सहचिन्तन भी सदैव होता रहा है, अर्थात् सामाजिक विचारों का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि स्वयं समाज का इतिहास अन्य शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि सामाजिक विचारधारा वैयक्तिक या सहचिन्तन के परिणामस्वरूप विकसित वे विचार हैं जो मुख्यत: सामाजिक जीवन एवं समस्याओं से सम्बन्धित हैं। मुख्य विद्वानों ने इसकी परिभाषाएँ निम्नलिखित प्रकार से दी है

बोगार्डस (Bogardus)
"जहाँ तक भूतकाल एवं वर्तमान का सम्बन्ध है नियमानुसार सामाजिक प्रश्नों के बारे में व्यक्तियों के विचार हैं। इस अर्थ में सामाजिक विचारधारा मानव इतिहास अथवा वर्तमान में यहाँ-वहाँ एक या कुछ व्यक्तियों द्वारा सामाजिक समस्याओं के सम्बन्ध में सूचना या विचार है।"

चैम्बलिस (Chambliss)
"सामाजिक विचार मानव प्राणियों एवं उनके साथियों के बीच सम्बन्धों से सम्बन्धित हैं।"

फूरफे (Fufey)
"सामाजिक विचारधारा मानवीय जीवन से सम्बन्धित है। सामाजिक विचार एक शब्द है क्योंकि इसमें मानव समूह की सभी प्रकार की गतिविधियाँ सम्मिलित हैं।"
          उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि सामाजिक विचारधारा का सम्बन्ध व्यक्तियों के सामान्य जीवन तथा सामाजिक समस्याओं के बारे में चिन्तन से है। इस प्रकार सामाजिक जीवन तथा समस्याओं के बारे में एक अथवा कुछ व्यक्तियों के चिन्तन व विचारों को ही सामाजिक विचार कहा जा सकता है क्योंकि प्रत्येक काल में सामाजिक जीवन का स्तर तथा समस्याएँ भिन्न-भिन्न रही हैं। इसलिए प्रत्येक काल की सामाजिक विचारधारा एक जैसी नहीं होती, अपितु प्रत्येक युग की अपनी एक पृथक तथा विशिष्ट विचारधारा होती है। सामाजिक विचारधारा का विकास सामाजिक अनुभवों के आधार पर निरन्तर होता रहता है क्योंकि आज की सामाजिक समस्या प्राचीन काल की विचारधारा से भिन्न है, इसलिए आधुनिक सामाजिक विचारधारा भी प्राचीन काल की विचारधारा से भिन्न है सामाजिक विचारधारा में जीवन के सामाजिक एवं अन्य पहलुओं की क्रियाओं तथा आर्थिक एवं राजनीतिक क्रियाओं के बारे में भी चिन्तन सम्मिलित है। इन सभी पहलुओं को जिन्हें पहले 'सामाजिक' के अन्तर्गत रखा जाता था, आज इन्हें 'समाजशास्त्र' के अन्तर्गत रखा जा सकता है।

सामाजिक विचारधारा की प्रकृति विशेषताएँ
समाज के द्वारा वैज्ञानिक आधार पर सही चिन्तन का विकास ही सामाजिक विचार की प्रकृति को स्पष्ट कर देता है। बोगार्डस के अनुसार, सामाजिक विचारधारा मानवीय विचारधारा की वह शाखा है जो कि अपनी सामाजिक एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर मानवीय अन्तर्सम्बन्धों तथा अंतक्रियाओ से विशेष रूप से सम्बन्धित है। इसके अनुसार सामाजिक विचार अमूर्त है। व्यवहारिक विचार अथवा प्रचलित विचार सामाजिक विचारों की श्रेणी में नहीं आते क्योंकि इनमें कोई गहराई नहीं होती। इनमें केवल कुछ मूल प्रश्न उठाये जाते हैं, सन्देह प्रकट किए जाते हैं तथा दूरगामी सह-सम्बन्धों का पता लगाने का प्रयास किया जाता है। दूसरी ओर, अमूर्त विचारों में कारवादी व्याख्याओं, वास्तविकता व वर्गीकरण, सम्बन्धों में पारदर्शिता तथा सन्तुलित विधियों की तरफ काफी ध्यान दिया जाता है। व्यवहारिक चिन्तन प्रत्येक सामान्य व्यक्ति के लिए सम्भव है, जबकि अमूर्त चिन्तन पूर्णतः असामान्य है।
          सामाजिक विचारधारा का सम्बन्ध केवल सामाजिक समस्याओं के बारे में ही सह-चिन्तन नहीं है, अपितु यह समाज के अन्य सभी पहलुओं, जिनमें आर्थिक तथा राजनीतिक क्रियाएँ भी सम्मिलित हैं, से भी सम्बन्धित है। यह अलग बात है कि इसकी उत्पत्ति प्रमुख रूप से सामाजिक समस्याओं के निराकरण के लिए होती है।
          प्रत्येक युग का सामाजिक जीवन भिन्न होता है, इसलिए प्रत्येक समाज तथा एक ही समाज के विभिन्न युगों में सामाजिक विचारधारा भिन्न-भिन्न होती है। सामाजिक विचारधारा का निरन्तर विकास मानव की विकासवादी प्रकृति का सूचक साथ ही सामाजिक विचारधारा किसी युग में विचारों के सामाजिक अनुभवों से सम्बन्धित होता है और इसकी प्रकृति विकासवादी होती है क्योंकि इसके आधार पर सामाजिक समस्याओं का निराकरण करने का प्रयास किया जाता है

सामाजिक विचारधारा की प्रमुख विशेषताएँ

  1. सामाजिक विचारधारा अमूर्त होती है क्योंकि यह विचारों से सम्बन्धित है।
  2. सामाजिक विचारधारा के उद्भव के साथ ही आवश्यकताओं की पूर्ति की समस्या उठ खड़ी होती है, तभी विभिन्न सामाजिक विचारधाराएँ जन्म लेती हैं।
  3. सामाजिक विचारधारा केवल सामाजिक समस्याओं से ही सम्बन्धित न होकर आर्थिक एवं राजनीतिक समस्याओं तथा नियोजन से भी सम्बन्धित है।
  4. प्रत्येक समाज की भिन्न-भिन्न सामाजिक विचारधारा होती है तथा एक साथ एक ही समाज के विभिन्न युगों की विचारधारा में भी भेद होता है क्योंकि उनकी संस्कृति तथा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि अलग-अलग होती है।
  5. सामाजिक विचारधारा सामाजिक अनुभवों द्वारा विकसित एवं प्रभावित होती है। समाज के प्रति होने वाले अनुभव ही विचारधारा को विकसित करते हैं।
  6. सामाजिक विचारधारा की प्रकृति विकासवादी होती है। यह निरन्तर वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में सुधार पर बल देती है।

सामाजिक चिन्तन की श्रेणियाँ 
बोगार्डस ने सामाजिक चिन्तन की तीन श्रेणियाँ बताई हैं। अन्य शब्दों में सामाजिक जीवन के बारे में व्यक्तियों के चिन्तन तीन प्रकार के हैं 

(1) सामाजिक नियोजन (Social Planning)- इस प्रकार के चिन्तन का प्रमुख उद्देश्य मानव समूहों की उन्नति करना होता है। बोगार्डस का कहना है कि कुछ व्यक्ति नियोजन शब्द से अभिप्राय सामान्य शब्दों में समाजवाद तथा साम्यवाद अथवा फासिस्टवाद (फासिज्म) के निर्माण से लगा देते हैं जो कि पूर्णतः गलत है। सामाजिक नियोजन का सार मानव समुदायों का विकास करना है। यह विकास विशेषज्ञों द्वारा सावधानीपूर्वक, सुनिश्चित एवं निर्धारित विधियों द्वारा किया जाता है। अन्य शब्दों में समुदायों के विकास व उन्नति के लिए नियोजित प्रयास ही सामाजिक नियोजन है। 

(2) समाज विरोधी चिन्तन (Anti-Social Thinking)- इस प्रकार के चिन्तन का उद्देश्य व्यक्तियों के हितों का किसी विशेष गुट या समूह उद्देश्यों के लिए शोषण करना है। यह अक्सर व्यक्तिवादी विचारों से शुरू होता है तथा ऐसी योजना में समाप्त होता है जिसमें कुछ व्यक्तियों को लाभ हो, जबकि अनेक अन्य व्यक्तियों को किसी-न-किसी प्रकार की हानि उठानी पड़ती है। जब इसके हानिकारक प्रभावों का जनसाधारण को पता चल जाता है तो जनसाधारण द्वारा इसका खण्डन शुरू हो जाता है। 

(3) वैज्ञानिक सामाजिक चिन्तन (Scientific Social Thinking)- इस प्रकार के चिन्तन का उद्देश्य प्रक्रियाओं का विश्लेषण करना है तथा ऐसी योजनाएँ बनाना है जिनमें मौलिक सामाजिक सुधार हो सके। इसमें समाज-विरोधी अथवा समाज उपयोगी हितों पर बल न देकर इसके अन्तर्गत कार्य करने वाली प्रक्रियाओं का विश्लेषण करने के पश्चात् सामाजिक प्रक्रियाओं का ज्ञान प्राप्त किया जाता है, चाहे यह ज्ञान कैसा भी क्यों न हो।

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